लेखनी प्रतियोगिता -23-Nov-2022:- ज़िंदगी के रंग अनेक
दैनिक पप्रतियोगिता:-
ज़िंदगी के रंग अनेक:-
यूं तो सुकून भरी ज़िन्दगी सभी को पसंद होती है। परंतु, कभी- कभी हमें ऐसा मुकाम देखना पढ़ता है कि हम जिसे अपने स्वपन में भी कभी नहीं सोच सकते। रमेश एक बहुत ही अमीर खानदान का लड़का था। उसके पिताजी एक व्यवसायी व्यक्ति थे। उनका चाय के बगानों का व्यवसाय था। उनके कुछ दोस्त थे, जिनके साथ उन्होंने पार्टनरशिप में वह व्यवसाय चलाया हुआ था।
व्यवसाय एकदम अच्छा चल रहा था। उनके पास बेहद रुपया- पैसा था। सारी सुख सुविधाएं थीं कार, बंगला। रमेश की एक बहन और थी। उसका नाम गीता था। वे दोनों ही भाई बहन उनके पिताजी की आंखों के तारे थे। पिताजी के साथ वे दोनों एरोप्लेन तक में घूम चुके थे। रमेश की माताजी थोड़ा डरती थीं। परंतु, रमेश एक साहसी बालक था। रमेश के पिताजी एक बहुत ही अच्छे और भोले इंसान थे। जो कपड़े वह अपने बच्चों के लिए लाते, वही कपड़े वह पड़ोस के और अपने नौकरों के बच्चों के लिए भी लाते। रमेश और उसके घरवालों ने कभी ज़मीन तक पर पैर नहीं रखा। हमेशा कार में घूमते।
अचानक रमेश के पिताजी का व्यवसाय घाटे में जाने लगा। उनके दोस्तों ने उन्हें दगा दे दिया। वे लोग सड़कों पर आ गए। रमेश के पिताजी की तबियत चिंता में रहने के कारण बिगड़ने लगी और एक दिन वे चल बसे। अब घर की सारी ज़िम्मेदारी रमेश पर आ गई। वह इस समय मात्र 14 वर्ष का ही था। अभी तो उसकी पढ़ाई भी बाकी थी। उसके 5 बहनें और 1 छोटा भाई और था। सभी लोग गांव में रहते थे। उसकी बड़ी बहन गीता का विवाह तो पिताजी के सामने ही हो चुका था।
रमेश को गांव छोड़कर शहर आना पड़ा। उसे जो कार्य मिलता, वह करता। एक दिन उसके कार्य से प्रसन्न होकर उसके एक जान- पहचान वाले व्यक्ति ने उसे कोर्ट एल.डी.सी. की पोस्ट पर लगा दिया। उसने कमाई शुरू की और धीरे- धीरे गांव से अपने भाई, बहन और मां को शहर ले आया, उन सभी को पढ़ाया लिखाया। भाई को बैंक में नौकरी लगवाई और दो बहनों का विवाह किया। फिर स्वयं का विवाह किया। दोनों पति पत्नी ने घर को संभाला और दो और बहनों को पढ़ाया और उनकी एवम छोटे भाई का भी विवाह किया।
रमेश और उसकी पत्नी ने खूब मेहनत और ईमानदारी से सभी को पाला- पोसा, बढ़ा किया। सभी की जिम्मेदारियां पूर्ण की और अपनी चार बच्चियों को भी अच्छे और अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय में पढ़ाया और अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाया। उन्हें अच्छे संस्कारों से पोषित किया। ज़िंदगी ने रमेश को कितने रंग दिखाए। जिसने कभी कार से नीचे ज़मीन पट पैर तक नहीं रखा था। उसे कितना परिश्रम करना पड़ा। परंतु, उसने हार नहीं मानी और अपनी सूझबूझ और मेहनत और ईमानदारी के बल पर फिर से सब कुछ हांसिल कर लिया।
यह तो रमेश की कहानी थी। परंतु, हमें भी ज़िंदगी किसी न किसी रूप में अलग- अलग रंग ज़रूर दिखाती है। हमें हार नहीं माननी चाहिए। कहते हैं ना - "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।" जो मन से जीता हुआ होता है। उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती। चाहे जिंदगी उसे कितने ही रंग क्यों न दिखाए। वह अपने मन की जीत से और अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर कोई न कोई मार्ग अवश्य बना लेता है। अतः ज़िंदगी के बिखरे रंगों को सुंदर चित्रकारी में परिवर्तित कर देता है।
Babita patel
24-Aug-2023 06:39 AM
nice one
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Swati Sharma
28-Mar-2024 10:33 PM
thanks
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madhura
17-Aug-2023 05:01 AM
nice
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Swati Sharma
28-Mar-2024 10:32 PM
thanks
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Punam verma
24-Nov-2022 03:01 PM
Very nice
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Swati Sharma
24-Nov-2022 04:46 PM
Thank you ma'am
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